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तम्‍बाकू को न कहें


 भारत में प्रत्‍येक 10 में से एक वयस्‍क व्‍यक्ति की मृत्‍यु तम्‍बाकू से जुड़ी बीमारियों के कारण होती है। तम्‍बाकू प्रति वर्ष 15 लाख कैंसर, 42 लाख हृदय रोगों और 37 लाख फेफड़ों की बीमारियों का कारण बनता है। मुंह के कैंसर के सर्वाधिक रोगी अपने ही देश में पाये जाते हैं।



अधिकृत आंकड़ों के अनुसार बीड़ी, सिगरेट, गुटका, खाने के तंबाकू और सूंघने के तम्‍बाकू आदि के रूप में देश में 4300 लाख (टन) तम्‍बाकू खप जाता है। 14 करोड़ पुरुष और चार करोड़ महिलाएं तम्‍बाकू सेवन की आदी हैं। 15 से 49 वर्ष के आयु-वर्ग में 57 प्रतिशत पुरुष और 10 प्रतिशत महिलाएं, किसी न किसी रूप में तम्‍बाकू का सेवन करती हैं। स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय का अनुमान है कि तम्‍बाकू वर्ष 2020 तक भारत में प्रति वर्ष 13 प्रतिशत व्‍यक्तियों की मृत्‍यु का जिम्‍मेदार बन जाएगा। तम्‍बाकू सेवन की बढ़ती हुई प्रवृत्ति में यदि कोई हस्‍तक्षेप न किया गया तो तीन करोड़ 84 लाख बीड़ी और सिगरेट पीने वाले व्‍यक्तियों में क्रमश: तीन करोड़ 84 लाख और एक करोड़ 32 लाख व्‍यक्ति समय से पहले काल ग्रास बन जाएंगे। दूसरे दर्जे का धूम्रपान भी एक बड़ी समस्‍या है। कुछ तम्‍बाकू उत्‍पादों को सुरक्षित माना जाता है जो कि गलत विश्‍वास है, क्‍योंकि तम्‍बाकू का सेवन हररूप में नुकसानदेह है।



गुटका, पैकेट जैसे मुद्दों को लेकर 2011 और 2012 में खाद्य सुरक्षा खाद्य मानक कानून में कई संशोधन किये गये। इन संशोधनों के परिणामस्‍वरूप 24 राज्‍यों और केंद्रशासित प्रदेशों की सरकारें तम्‍बाकू वाले गुटके और पान मसाले पर प्रतिबंध लगा चुकी हैं। लेकिन उन प्रतिबंधों के अमल पर प्रश्‍न चिन्‍ह लगा हुआ है। उच्‍चतम न्‍यायालय ने पिछले महीने ही संबद्ध राज्‍यों से प्रतिबंधों पर अमल को लेकर रिपोर्ट मांगी है।



सितंबर 2012 में जारी नये नियमों के अनुसार तम्‍बाकू उत्‍पादों की पैकिंग पर चित्रात्‍मक चेतावनी में तम्‍बाकू के इस्‍तेमाल से प्रभावित होने वाले मानव अंगों को दर्शाना और लाल रंग में ‘’धूम्रपान जानलेवा है’’, तम्‍बाकू ‘’जानलेवा है’’ लिखना अनिवार्य कर दिया गया है। यह सब तम्‍बाकू की पैकिंग के 40 प्रतिशत क्षेत्र में होना चाहिए।



स्‍वास्‍थ्‍य एवं, परिवार कल्‍याण मंत्रालय और डब्‍ल्‍यू एच ओ के तत्‍वाधान में हाल ही में कई सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों के सम्‍मेलन में तम्‍बाकू उत्‍पादों के विज्ञापनों और प्रायोजन पर पूर्ण प्रतिबंध की मांग की गई। सम्‍मेलन में कहा गया कि प्रतिबंधों के बावजूद तम्‍बाकू उत्‍पादों के विज्ञापनों की भरमार रहती है। सम्‍मेलन में शामिल गैर-सरकारी संगठनों में युवाओं में स्‍वास्‍थ्‍य से संबद्ध सूचना के सम्‍प्रेषण से जुड़ा संगठन-‘’हृदय’’- और वालेन्‍टरी हेल्‍थ एसोसिएशन ऑफ इंडिया-‘‘वी एच ए आई शामिल थे। तम्‍बाकू-उत्‍पादों के विज्ञापन, सिगरेट और अन्‍य तम्‍बाकू उत्‍पाद व्‍यापार, उत्‍पादन, आपूर्ति और वितरण नियमन कानून 2003 के तहत प्रतिबंधित हैं।



डब्‍ल्‍यूएचओ के अध्‍ययन के अनुसार धूम्रपान के आदी 70 प्रतिशत व्‍यक्ति धूम्रपान छोड़ने की इच्‍छा रखते हैं लेकिन प्रति वर्ष उनमें से केवल 30 प्रतिशत व्‍यक्ति ही उसकी कोशिश करते हैं जबकि उसमें सफलता केवल तीन से पांच प्रतिशत व्‍यक्तियों को ही मिल पाती है। इस वर्ष-विश्‍व तम्‍बाकू विहीन दिवस (31 मई 2013) का आदर्श वाक्‍य है-‘‘तम्‍बाकू उत्‍पादों के विज्ञापन संवर्द्धन और प्रायोजन पर प्रतिबंध-’’।



डब्‍ल्‍यूएचओ के 2013 के अभियान का उद्देश्‍य तम्‍बाकू उद्योग को, तम्‍बाकू उत्‍पादों के विज्ञापन, संवर्द्धन और प्रायोजन पर प्रतिबंधों को कुंद करने से रोकने के लिए स्‍थानीय, राष्‍ट्रीय और अंतर्राष्‍ट्रीय प्रयासों को तेज करना है। क्‍योंकि तम्‍बाकू जनित बीमारियों से प्रति वर्ष मरने वाले 60 लाख व्‍यक्तियों में छह‍ लाख व्‍यक्ति अप्रत्‍यक्ष धूम्रपान से मरते हैं। नि:संदेह जब तक नियमों, कानूनों और जन-जागरूकता, के जरिये तम्‍बाकू-उपभोग की सभी किस्मों से छुटकारा नहीं पा लिया जाता, -‘‘तम्‍बाकू मुक्‍त भारत-’’ का लक्ष्‍य हासिल नहीं किया जा सकता। 




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